जब हक़ीक़त कश्ती की...
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तब न कहना कि समंदर की ख़ता थी दोस्तों
इल्म सब को था कि है मुश्किल बड़ा अपना सफर
मंज़िलों तक जाने की अपनी रज़ा थी दोस्तों
बेमुरव्वत सी बड़ी उनकी वफ़ा थी दोस्तों
मैंने तो कुछ न कहा उस आखरी पल में उन्हें
कांपती सी होंठ पर उनके सदा थी दोस्तों
क्या कहें किस दौर से हम घर बचाते आ रहे
कुछ तो बारिश का जुनू था कुछ हवा थी दोस्तो...
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