ख्वाहिश नहीं मुझे मशहूर होने की
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*डॉ. हरिवंशराय बच्चन जी की एक सुंदर कविता*
_ख्वाहिश नहीं मुझे_
_मशहूर होने की,_
_आप मुझे पेहचानते हो_
_बस इतना ही काफी है._
_अच्छे ने अच्छा और_
_बुरे ने बुरा जाना मुझे,_
_क्यों की जिसकी जितनी जरूरत थी_
_उसने उतना ही पहचाना मुझे._
_जिन्दगी का फलसफा भी_
_कितना अजीब है,_
_शामें कटती नहीं और_
_साल गुजरते चले जा रहें है._
_दौड है ये जिन्दगी,_
_जीत जाओ तो कई_
_अपने पीछे छूट जाते हैं और_
_हार जाओ तो_
_अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं._
_बैठ जाता हूँ_
_मिट्टी पे अकसर,_
_क्योंकी मुझे अपनी_
_औकात अच्छी लगती है._
_मैंने समंदर से_
_सीखा है जीने का सलीका,_
_चुपचाप से बहना और_
_अपनी मौज मे रेहना._
_कोई ऐब नहीं है,_
_पर सच कहता हूँ_
_मुझमें कोई फरेब नहीं है._
_जल जाते है मेरे अंदाज से_
_मेरे दुश्मन,_
_क्यों की एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत_
_बदली और न दोस्त बदले हैं._
_एक घडी खरीदकर_
_हाथ मे क्या बांध ली_
_वक्त पीछे ही_
_पड गया मेरे._
_सोचा था घर बना कर_
_बैठुंगा सुकून से,_
_पर घर की जरूरतों ने_
_मुसाफिर बना डाला मुझे._
_ऐ गालिब,_
_बचपन वाला इतवार_
_अब नहीं आता._
_जीवन की भाग दौड मे_
_क्यूँ वक्त के साथ रंगत खो जाती है ?_
_हँसती-खेलती जिन्दगी भी_
_आम हो जाती है._
_एक सवेरा था_
_जब हँसकर उठते थे हम,_
_और आज कई बार बिना मुस्कुराये_
_ही शाम हो जाती है._
_कितने दूर निकल गए_
_रिश्तों को निभाते निभाते,_
_खुद को खो दिया हम ने_
_अपनों को पाते पाते._
_लोग केहते है_
_हम मुस्कुराते बहुत है,_
_और हम थक गए_
_दर्द छुपाते छुपाते._
_खुश हूँ और सबको_
_खुश रखता हूँ,_
_लापरवाह हूँ फिर भी_
_सब की परवाह करता हूँ._
_मालूम है_
_कोई मोल नहीं है मेरा फिर भी_
_कुछ अनमोल लोगों से_
_रिश्ता रखता हूँ._
बच्चन जी की कविता है ये
ReplyDeleteकिस काव्य संग्रह में है बताने की कृपा करें
DeleteWe edit the blog. This poem is wrriten by Harivansh Rai Bachchan.
DeleteMujhe lagta hai ye blog farzi hai inhe sahitya ya lekhakon ki jaankari hai aisa kadapi nahi dikhaya aise logon ke keilaaf to action liya Jana chahiye Jo bina verification ke Google pe kuch bhi upload Kar dete hain
Deletesaale madarchod chup ho ja behen ke land
DeleteTum eisa byobahar kaise kar sakte ho?
Deleteबच्चन जी के किस काव्य संग्रह में है ? बताने का कष्ट करें
ReplyDeleteख्वाहिश नहीं मुझे मशहूर ---- कविता के लेखक कौन है?
DeleteMee hu
DeleteMunshi Premchand
Deleteब्लॉगर महोदय प्रेमचंद की कविता है? स्रोत बताने का कष्ट करें..... किस किताब में है ये
ReplyDeleteप्रेमचन्द की कविता है?
Deleteहरिवंश राय बच्चन जी की कविता है ये
DeleteAgar kisi ke paas is kavita ki original pdf hai to send karna. Ye kiski kavita hai ?
ReplyDeleteMunsi Premchand
DeleteYe premchand ji ki kavita hai
ReplyDeleteप्रेमचंद ने कविताएं नहीं लिखीं है।
Deletegrammatical mistakes hai isme. it should be दौड़ not दौड,
ReplyDeleteits घड़ी not घडी, its पड़ not पड।
साफ लिखा है
ReplyDeleteसूकून की बात मत कर ए मेरे गालिब
इससे ज़ाहिर होता है की यह गालिब की रचना है।
👍👍👍
Deleteकाव्य की भाषा गालिब की भी नहीं लगती।
ReplyDeleteग़ालिब की तो कतई नहीं है।शायद बच्चन जी की है।
Deleteये ग़ालिब की ही रचना है...👍
ReplyDeleteरचना को बार बार बीच मे मत लाओ
DeleteYe Munshi Premchand ji ki kavita hai
ReplyDeleteWho has written this poem? Harivansh Rai Bachchan or Munshi Premchand or none of them??
ReplyDeleteAre baklol ye munsi prem chandra ki shayari hai .kis book me study karke blogging ki bewkoofi ki😂😂 .
ReplyDeleteMunshi premchand collection of short stories, articles, premchand ki kavita Hindi. Read more about Premchand and access their famous poems.
ReplyDeleteलगता है कुछ लोगोंको सत्य से नफ़रत है।
ReplyDeleteFact check and than comment.
Wow
ReplyDeleteये प्रेमचंद की कविता नहीं लगती
ReplyDeleteये हरिवंश राय बच्चन जी के सुंदर विचारों के साथ - साथ सुंदर सब्दों भरी लिखित कविता है।
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