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मुझे तलाश है ख़ुद की...

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मुझे तलाश है ख़ुद की... जाने कहाँ खोया हुआ हूँ? करता हूँ एक सवाल ख़ुद से... क्या तुम्हारे ख़्वाबों में हूँ? Mujhe Talash Hai Khud Ki... Jane Kahan Khoya Hoon? Karta Hoon Ek Sawal Khud Se... Kya Tumhare Khwabo Me Rahta Hoon?

कहते है जिनके ख़यालो हम खोये हुए है...

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कहते है जिनके ख़यालो हम खोये हुए है... वो भी हमें ख़यालों में सोचा करते है।  ग़र ये सच है तो ख़यालों में ही सही... उन ख़यालों में हम साथ जिया करते है।  Kahate Hai Jinke Khayalo Me Ham Khoye Huye Hai... Vo Bhi Hame Khayalo Me Socha Karte Hai . Gar Ye Sach Hai To Khayalo Me Hi Sahi... Un Khayalo Me Ham Sath Jiya Karte Hai . 

बिखर जाऊँ ऐसे जैसे हो...

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बिखर जाऊँ ऐसे, जैसे हो रंग गुलाल का।  Bikhar Jaun Aise, Jaise Ho Rang Gulal Ka... भूलना तो हम भी चाहते है, गर चाहते पूरी हो।  Bhulna To Ham Bhi Chahte Hai, Gar Chahte Puri Ho.

किसी ने वक्त गुजारने के लिए अपना बना लिया।

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अपनी जिंदगी में भी लिखे है, कुछ ऐसे खुशनुमा किस्से। किसी ने अपना बना कर वक्त गुजार लिया, किसी ने वक्त गुजारने के लिए अपना बना लिया। Apni Zindagi Me Bhi Likhe Hai,  Kuch Aise Khushnuma Kisse. Kisi Ne Apna Bana Kar Vakt Guzar Liya, Kisi Ne Vakt Gujarane Ke Liye Apna Banaa Liya .

...बस तुम ही नजर आते हो।

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दिन गुजर जाएंगे,  हालात भी संभल जाएंगे।  दर्द दिया तूने ऐसा मेरे जालिम,  कितना भी होश संभाल लो..  चारों तरफ बस तुम ही नजर आते हो,  ...बस तुम ही नजर आते हो।  Din Gujar Jayenge,  Haalat bhi Sambhal Jayenge . Dard Diya Tune Aisa Mere Jalim, Kitna Bhi Hosh Sambhal lo... Charo Taraf Bas Tum Hi Nazar Aate Ho, ...Bas Tum Hi Nazar Aate Ho .

स्वामिनी है विशाल ह्रदय की...

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रूकती ना कभी चली सी है  औरतें बह रही नदी सी है समेटे सारा जहां अपने भीतर आसमां या कहीं जमीं सी है चाशनी सी रिश्ते में घुल जाती प्रेम वात्सल्य में पगी सी है स्वामिनी है विशाल ह्रदय की प्रबल जिजीविषा भरी सी है सरंक्षिका सारे जगत की नारी सर्वगुण संपन्न देवी सी है ।। Rukti na kabhi chali si hai, Aurte bah rahi nadi si hai Samete sara jahan apne bhitar Aasman ya kahi jamin si hai Chashni si rishte me ghul jati Prem vatsalya me pagi si hai Swamini hai Vishal hridya ki Prabal jijivisha bhari si hai Sanrakshika sare jagat ki nari Sarvgun sampanna devi si hai ।। 

उलझन कुछ भी समझ ना आई, एक सिरे पर ख्वाहिश थी, और ...

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हिम-सा शीतल,नीर-सा चंचल   कनक-कलेवर, मधुमीठा - सा, चाँद  से  उजले चंदन तन पर प्रेम   गीत   मैंने   लिखा  था. प्रथम   प्रीत   का  था  स्पंदन सुधबुध का भी भान कहाँ था , सहज  धधक,उद्वेलन  मन में और  कोई  अरमान  कहाँ था.  कुमकुम- सा कोमल आकर्षण सुमन-सुगंध -सा वो आलिंगन, चाँदी  जैसे   उजले  दिन   वो हर  पल चमका कुंदन - कुंदन. स्वप्न  प्रवाह  सबल  ऐसा   था जीवन  में   संबल   जैसा   था, धरती  पर  ना  उतर  सका  वो व्योम - प्रवाही    गंगाजल  था. प्रेम    कहानी    ऐसी     उलझी उलझन कुछ भी समझ नाआई, एक   सिरे   पर   ख्वाहिश   थी और  दूजी ओर खड़ी रुसवाई.  रिश्ता  कच्चा  ही था  लेकिन गाँठ    प्रबलतम    जोड़   गया, जाते    जाते    दाग    दे    गया रंग    वो    पक्के    छोड़   गया. Him-sa sheetal, neer-sa chanchal  Kanak-kalevar, madhumeetha - sa, Chaand se ujale chandan tan par  Prem geet mainne likha tha.  Pratham preet ka tha spandan  Sudhabudh ka bhee bhaan kahaan tha ,  Sahaj dhadhak,udvelan man mein Aur koee aramaan kahaan tha.  Kumakum- sa komal aakarshan  Suman-sugandh -sa vo aalinga