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वो लफ्ज था.......इश्क !

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"इश्क" मंन उदास था, सोचा चलो आज, इश्क के बारे कुछ लिखा जाऐ। कागज और कलम उठाई, बेठ गये लिखने। लाख कोशिश की, मगर, कुछ भी लिख ना पाऐ। जानें क्या हुआ आज, लफ्ज और ख्यालो में, ताल-मेल बिठा ना पाऐ। हार कर कलम वापस मेज पर रख दी, मगर, लिखने की चाह को ज़ेहन से निकाल ना पाऐ दफ़तन, कलम और दवात सिहायी की, फर्श पर गिरी और हम संभाल ना पाऐ। देख, बिखरी सिहायी और कलम को, आँखे भर आई। और, अशको को बहने से रोक ना पाऐ। बिखरी सिहायी और अशक दोनो आपस में घुल-मिल गये। फर्श पर, इक धुंधली सी तस्वीर उभर आई। क्या थी वो तस्वीर, कुछ संमझ ना पाये। ग़ोर से, जब फर्श को देखा। शायद, इक लफ्ज उभर कर आया था। वो लफ्ज था.......,,,,,,,,”इश्क !