एक बेवफा सनम और उसकी तनहाई में...
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एक दर्द है जो दिल से जाता नहीं
यही वजह है कि हमें तेरी याद आती है
लो सुबह आ गई, तू रातभर रुलाती रही
बेखुदी में ही ये रात भी कट जाती है...
एक बेवफा सनम और उसकी तनहाई में...
आज भी कितना नादान है दिल समझता ही नहीं
बरसों बाद उन्हें देखा तो दुआएं मांग बैठा
जो सहरा याद में उसकी ये मेरा दिन गुजरता है
की हर एक शाम अब मेरी बड़ी तनहा सी रहती है
परवाह करने की आदत ने ही मजबुर कर रखा है हमे ....
कही हम बेपरवहा होते तो स्कुन की जिन्दगी जीते ....
किसी के दिल में क्या छुपा है यह बस खुद खुदा ही जानता है
दिल अगर बेनकाब होता तो सोचो कितना फसाद होता
एक बेवफा सनम और उसकी तनहाई में...
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