उलझन कुछ भी समझ ना आई, एक सिरे पर ख्वाहिश थी, और ...

हिम-सा शीतल,नीर-सा चंचल कनक-कलेवर, मधुमीठा - सा, चाँद से उजले चंदन तन पर प्रेम गीत मैंने लिखा था. प्रथम प्रीत का था स्पंदन सुधबुध का भी भान कहाँ था , सहज धधक,उद्वेलन मन में और कोई अरमान कहाँ था. कुमकुम- सा कोमल आकर्षण सुमन-सुगंध -सा वो आलिंगन, चाँदी जैसे उजले दिन वो हर पल चमका कुंदन - कुंदन. स्वप्न प्रवाह सबल ऐसा था जीवन में संबल जैसा था, धरती पर ना उतर सका वो व्योम - प्रवाही गंगाजल था. प्रेम कहानी ऐसी उलझी उलझन कुछ भी समझ नाआई, एक सिरे पर ख्वाहिश थी और दूजी ओर खड़ी रुसवाई. रिश्ता कच्चा ही था लेकिन गाँठ प्रबलतम जोड़ गया, जाते ...