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Showing posts from April, 2018

मुस्कुराहटों में समाये है.....

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*हम ना अजनबी हैं ना पराये हैं, आप और हम एक रिश्ते के साये है...!!* *जब जी चाहे महसूस कर लीजियेगा,हम तो आपकी मुस्कुराहटों में समाये है.....* 

किस्से दिल लगाया था

थोड़ी थोड़ी ही सही मगर बातें तो किया करो ,  चुप रहते हो तो भूल जाने का एहसास होता है। मै कतरा कतरा फना हुआ, ज़र्रा ज़र्रा  बीखर गया.. ऐ ज़िदंगी तुझसे मिलते-मिलते मै अपने आप से बिछड़ गया... वो शर्मायें मेरे सवाल पर कि उठा सके न झुका के सर,    उड़ी ज़ुल्फ चेहरे पे इस तरह, कि शबों के राज़ मचल गए.. 🌹चाहत थी या दिल्लगी या यूँही मन भरमाया था याद करोगे तुम भी कभी,किस्से दिल लगाया था.🌹

चाहकर भी

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ख्वाहिश नहीं मुझे मशहूर होने की

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     *डॉ. हरिवंशराय बच्चन जी की एक सुंदर कविता* _ख्वाहिश नहीं मुझे_ _मशहूर होने की,_         _आप मुझे पेहचानते हो_         _बस इतना ही काफी है._ _अच्छे ने अच्छा और_ _बुरे ने बुरा जाना मुझे,_         _क्यों की जिसकी जितनी जरूरत थी_         _उसने उतना ही पहचाना मुझे._ _जिन्दगी का फलसफा भी_ _कितना अजीब है,_         _शामें कटती नहीं और_         _साल गुजरते चले जा रहें है._ _एक अजीब सी_ _दौड है ये जिन्दगी,_         _जीत जाओ तो कई_         _अपने पीछे छूट जाते हैं और_ _हार जाओ तो_ _अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं._ _बैठ जाता हूँ_ _मिट्टी पे अकसर,_         _क्योंकी मुझे अपनी_         _औकात अच्छी लगती है._ _मैंने समंदर से_ _सीखा है जीने का सलीका,_         _चुपचाप से बहना और_         _अपनी मौज मे रेहना._ _ऐसा नहीं की मुझमें_ _कोई ऐब नहीं है,_         _पर सच कहता हूँ_         _मुझमें कोई फरेब नहीं है._ _जल जाते है मेरे अंदाज से_ _मेरे दुश्मन,_         _क्यों की एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत_         _बदली और न दोस्त बदले हैं._ _एक घडी खरीदकर_ _हाथ मे